"जब एक ईमानदार अफसर पर आरोप लगता है तो उसके मन की बात को कोई नहीं रोक सकता है ''
जैसा की हम सब जानते है भारत शुरू से ही नेताओ की राजनीती का देश रहा है जिस देश में पढ़े लिखे तो इन अनपढ़ और षड्यंत्र कारी नेताओ की राजनीती का शिकार बनते है और ये हमारे देश के नागरिको से झूठ बोलकर अपनी पोटली भरते है
कुछ दिन पहले भी बी चंद्रकला ने अपने इसी अकाउंट से एक कविता शेयर की थी जो कुछ इस तरह से थी।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
फलक से रंग, या मुझे रंग दे जमीं से ,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से ।।
छन-छन करती पायल से ,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर ;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो, ज्यों चाँदनी बिखरी ,
माथे पर फैली ऊषा-किरण ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग, या मुझे रंग दे, वहीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से ।।
कमर को रंग, जैसे, छलकी गगरिया ,
उर,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया ,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर ,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया ।।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख,
तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया ,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो,
छन-छन करती नुपूर बजी हो,
फाग के आग से उठती सरगम,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा,
कपोल को चूमे, लट का नगीना,
तपती जमीं सा मन को रंग दे,
रोम-रोम तेरी चाहूँ पीना ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना ।
उन्होंने अंतिम में ये भी लिखा था कि "चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा ,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाए ,दोस्तों । आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें ।।"
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