जिन बच्चों को कोई अच्छा स्कूल अपनी चौखट पर खड़ा नहीं होने देता । जिनके माता पिता को कान्वेंट का गार्ड दुत्कार कर भगा देता है उन्हें प्राथमिक शिक्षक, इज्जत और सम्मान से न सिर्फ स्कूल में पढ़ाते हैं बल्कि सम्मान से जीवन जीना भी सिखाते हैं।
मीडिया,शासन ओर समाज के खुद को ज्ञानी समझने वाले लोग जिनको अपनी नोकरी से ज्यादा फिक्र सरकारी मास्टर की है उन्होंने सरकारी शिक्षकों के प्रति गलत प्रचार कर रखा है जबकि सच्चाई ये है कि सरकारी स्कूलों में सबसे बेहतर शिक्षक होते हैं। सबसे योग्य लोगों को ही सरकारी स्कूलों में नियुक्ति मिल पाती है।
आज के प्राथमिक शिक्षक दो-दो ,तीन-तीन सब्जेक्ट्स से एम.ए., कुछेक Ph.D. तक की शैक्षिक योग्यता वाले होते हैं । उसके बाद M.Ed, B.Ed. ,बी.टी.सी., टेट, सुपरटेट आदि जैसी विशेष योग्यता वाली परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर शासकीय विद्यालयों में शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं जिन्हे कमतर आंकते हुए कैमरा लटकाकर फर्जी पत्रकार , छुटभैये, अंगूठा छाप नेता स्कूल में जाकर रोब दिखाते हैं, उनकी शिक्षा पर उंगली उठाते हैं, जिनको पुलिस, कलेक्ट्रेट, एस.डी.एम. कार्यालय, तहसील, विकास खंड एवम अन्य कार्यालयों में हिम्मत नही होती जाने की । जहां अधिकारियों के नाक के नीचे अधिकारी और कर्मचारी समय और श्रम की चोरी के साथ - साथ खुलेआम लूट करते हैं जनता की ।
हमारा शिक्षक अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं है, यूनाइटेड नहीं है, अन्यथा बिना उसकी इजाजत के कोई भी अनधिकृत व्यक्ति विद्यालय परिसर में प्रवेश तो कर जाय ।
मैं शिक्षकों के बहुत नजदीक रहा अपने सेवाकाल में । मेरा यह अनुभव रहा कि अधिकतर शिक्षकों का शोषण शिक्षक ही कराता है । जो शिक्षकों का नेता होता है वह अपने मूल दायित्व शिक्षण कार्य को छोड़कर दलाली का काम करता है, वह मध्यस्थ होता है उच्च अधिकारियों और शिक्षकों का।
शिक्षकों की वास्तविक समस्याओं से उन्हे कोई मतलब नहीं, यदि है तो पैसे से काम कराना । खुद पैसा पैदा करना और अधिकारियों को पैदा करके देना। जो शिक्षक बी.आर.सी., ए. बी.आर.सी. या एन.पी.आर.सी.बने
उन्होंने अपने को शिक्षकों का अधिकारी मान लिया । स्कूलों में जाकर ऐसा रौब झाड़ते थे जैसे वही उनके बी.एस.ए.या डी.एम. हों। ये सभी अपने वास्तविक कर्तव्य शिक्षण कार्य से दूर रहे और अपने ए.बी.एस.ए.( पूर्व पद) को अपनी साइकिल पर बैठालकर विद्यालयों में घुमाते थे क्यों घुमाते थे यह सर्व विदित था । यह ज्यादातर अधिकारियों के व्यक्तिगत काम ही करते थे । इन्ही सभी बातों का आंकलन कर शासन ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया ।
ऐसा नहीं है की सभी बी आर सी आदि ऐसा करते थे, कुछ ने संघर्ष किया मेहनत की ,ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर कीर्तिमान स्थापित किए जो काबिले तारीफ रहे ।
प्राइवेट स्कूलों में कम शिक्षित, अप्रशिक्षित शिक्षकों की भरमार होती है लेकिन अब शिक्षा को पैसे से तौलने लगे हैं लोग । जहां ज्यादा पैसे खर्च होते हैं वहां की शिक्षा को ज्यादा बढ़िया समझते हैं लोग। प्राइवेट स्कूलों में अच्छी खासी फीस भी देंगे और बच्चे को ट्यूशन भी कराएंगे लेकिन सरकारी स्कूल में शिक्षा दिलाने वाले अभिभावक ट्यूशन तो दूर की बात पढ़ाई के समय में खेत में काम और कराएंगे।
लिखने के लिए बहुत कुछ है इस विषय पर लेकिन इतना लिखने हेतु मंच नहीं है यह ।
अंत में बस इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि शिक्षक से केवल शिक्षण कार्य ही लिया जाय, उसका आर्थिक व मानसिक शोषण न किया जाय , उसके स्कूल में दखलंदाजी केवल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की ही हो तो आज भी प्राथमिक शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा हो सकता है ।
प्राइमरी का शिक्षक एक ऐसे बच्चे को शिक्षा देता है जो अबोध है, अज्ञानी है, नट - खट है, रोता है, स्कूल आने से घबराता है , गुस्सा दिलाता है, कोई - कोई तो शिक्षक और शिक्षिकाओं को गाली भी दे देता है लेकिन शिक्षक उन्हे भी लाइन पर ले आते हैं । बहुत कठिन है प्राथमिक शिक्षण कार्य । जब कि उच्च शिक्षा में उतना ही आसान ।
लेक्चर दो और शिक्षण कार्य खत्म , समझ में आए तो ठीक न समझ में आए तो ठीक। पढ़ो तो ठीक न पढ़ो तो ठीक । वेतन प्राइमरी के अध्यापक से तीन गुना और शिक्षण के घंटे मात्र तीन या चार घंटे , प्राइमरी के अध्यापक से तिहाई ।
बच्चे कितने फेल हुए, कितने पास हुए ,कोई मतलब नहीं , कोई जिम्मेवारी नहीं ।ये केमरे लटकपाल,
प्रधान, अधिकारी और नेता श्री वहां तो कभी नहीं जाते, चुप - चाप फीस जमा करवा देते हैं हिम्मत नहीं होती कालेज में घुसने और चूं चप्पड़ करने की ।
प्राइमरी का शिक्षक बच्चे के भविष्य के निर्माण की निर्माणकर्ता है उसके बाद अन्य शिक्षक पकी पकाई खाने के लिए ।
अतः मैं प्रथम पूज्य प्राथमिक शिक्षक को सर्व प्रथम नमन करता हूं।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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