अंतर खत्म: नीट परीक्षा देने के बाद ही विदेश में कर सकते हैं एमबीबीएस, वापस आने के बाद नेक्सट परीक्षा भी जरूरी MBBS STUDENTS STUDY

*अंतर खत्म:*
*नीट परीक्षा देने के बाद ही विदेश में कर सकते हैं एमबीबीएस, वापस आने के बाद नेक्सट परीक्षा भी जरूरी*

नए नियमों के अनुसार, भारत या फिर विदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए नीट परीक्षा पास करना अनिवार्य है। यूक्रेन, रूस, चीन सहित कई देशों में नीट परीक्षा पास करने वालों को ही एमबीबीएस में एडमिशन मिलता है। इसके बाद जब उक्त छात्र एमबीबीएस पूरा करने के बाद वापस भारत आता है तो उसे नेक्सट परीक्षा देनी होती है। इसके बाद ही उसे लाइसेंस प्राप्त होता है। 
रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई में हजारों भारतीय छात्र फंसे हैं। चिकित्सीय शिक्षा लेने यूक्रेन गए इन छात्रों में अधिकांश एमबीबीएस पाठ्यक्रम के पहले और दूसरे वर्ष के छात्र हैं जो साल 2020 और 2021 के दौरान नीट परीक्षा पास करने के बाद यूक्रेन में एडमिशन मिला। इन छात्रों की वतन वापसी को लेकर हर कोई चितिंत भी है। ऐसे में कई लोग इंटरनेट पर यह भी तलाश रहे हैं कि आखिर यूक्रेन में छात्र चिकित्सीय पढ़ाई करने के लिए क्यों जा रहे हैं? क्या इसके पीछे फीस भारत की तुलना में फीस कम है या फिर वहां पढ़ाई सामान्य है? 
इन सवालों पर नई दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल के सीनियर रेजिडेंट डॉ. मनीष कुमार ने कहा, ‘आज से कुछ वर्ष पहले अगर ये सवाल पूछे जाते तो जवाब कुछ और थे लेकिन अब नियमों में बदलाव हो चुका है। इसलिए अब विदेश में चिकित्सा शिक्षा लेने के लिए ये कारण नहीं है।’ 
उन्होंने बताया कि अब नियमों में बदलाव हो चुका है। इसकी वजह से एमबीबीएस तक वही छात्र पहुंच पा रहे हैं जिनमें पढ़ाई के प्रति लगाव है। साथ ही एमबीबीएस करने के बाद फिर से परीक्षा देने से उनकी योग्यता के बारे में भी पता चलेगा। इसी परीक्षा में पास होने के लिए छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई गंभीर रूप से करता है। 

*क्या हैं नए नियम, विदेश के लिए भी जरूरी*

नए नियमों के अनुसार, भारत या फिर विदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए नीट परीक्षा पास करना अनिवार्य है। यूक्रेन, रूस, चीन सहित कई देशों में नीट परीक्षा पास करने वालों को ही एमबीबीएस में एडमिशन मिलता है। इसके बाद जब उक्त छात्र एमबीबीएस पूरा करने के बाद वापस भारत आता है तो उसे नेक्सट परीक्षा देनी होती है। इसके बाद ही उसे लाइसेंस प्राप्त होता है। यही नेक्सट परीक्षा भारतीय मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को भी देनी पड़ती है। इसी के चलते अब विदेश और भारत में चिकित्सा शिक्षा के बीच एक समानता आई है। 

*पहले 16 से 18 फीसदी होते थे पास*
डॉ. मनीष ने बताया कि साल 2020 से नए नियमों के तहत ही चिकित्सा शिक्षा चल रही है। उससे पहले विदेश से आने वालों के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेज्युएट एग्जामिनेशन (एफएमजीई) देना पड़ता था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ही अनुसार साल 2012 से 2018 के बीच देश में एफएमजीई का पासिंग परसेंट 16 से 18 फीसदी तक रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि तब कोई भी छात्र विदेश जाकर एमबीबीएस में एडमिशन ले सकता था और वहां रहते समय पढ़ाई गंभीरता से नहीं करने या फिर कॉलेज ही ठीक न होने की वजह से भारतीय चिकित्सा के मानकों पर छात्र खरा नहीं उतर पाता था।

*अगले साल से लागू होगा नेक्सट*
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगले साल से देश में नेक्सट परीक्षा लागू होगी जिसके बाद भारत या फिर विदेश में एमबीबीएस करने वाले के लिए यह परीक्षा अनिवार्य होगी। इस साल 2022 में मॉक टेस्ट भी कराया जा रहा है। अभी तक विदेश से आने वालों के लिए एफएमजीई परीक्षा हो रही है, जिसका पासिंग परसेंटेज 50 फीसदी है। यह विदेश के सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों के अनिवार्य है।

*विदेश में पढ़े डॉक्टर, भारत में फेल*
दिसंबर 2021 में आयोजित एफएमजीई परीक्षा के दौरान 23,691 छात्र शामिल हुए जिनमें से 5665 छात्र ही परीक्षा पास कर पाए। यह आंकड़ा करीब 23.91 फीसदी बैठता है। इस परीक्षा में कम से कम 300 में से 150 अंक मतलब 50 फीसदी लाना अनिवार्य होता है। लेकिन 17,607 छात्रों के अंक 50 फीसदी से भी कम थे। वहीं 342 परीक्षा में शामिल नहीं हुए और 77 छात्रों ने अपना आवेदन वापस ले लिया। अधिकारी ने बताया कि अगर 2010 से 2021 के पासिंग का औसत देखा जाए तो यह तकरीबन 20 फीसदी बैठता है।

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