महादेव गोविंद रानाडे⬧ महादेव गोविंद रानाडे का जन्म 18 जनवरी Mahadev Govind Ranade

महादेव गोविंद रानाडे
⬧  महादेव गोविंद रानाडे का जन्म 18 जनवरी, 1842 को महाराष्ट्र के निफाड़ में हुआ था। 
⬧  भारत की महान विभूति महादेव गोविन्द रानाडे की शिक्षा मुंबई के एल्फिन्स्टन कॉलेज में हुई थी।
⬧  गोविन्द रानाडे एक प्रसिद्ध विद्वान, समाज सुधारक, न्यायविद् और भारतीय राष्ट्रवादी थे तथा इन्हें ‘महाराष्ट्र का सुकरात’ भी कहा जाता है। 
⬧  रानाडे को प्रार्थना समाज, आर्य समाज और ब्रह्म समाज जैसे तत्कालीन समाज सुधारक संगठनों ने अधिक प्रभावित किया। 
⬧  इन्होंने ब्रह्म समाज आन्दोलन की विचारधारा को बंगाल के बाहर प्रसारित किया तथा तात्कालिक सामाजिक कुरीतियों और अँधविश्वासों का कड़ा विरोध करते हुए समाज सुधार के कामों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 
⬧  महादेव गोविन्द रानाडे ने सामाजिक कुरीतियाँ जैसे-बाल विवाह, विधवाओं का मुंडन, शादी-विवाह और समारोहों में जरूरत से ज्यादा खर्च और विदेश यात्रा के लिए जातिगत भेदभाव का पुरजोर विरोध किया। 
⬧  इसके साथ ही उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा पर भी बल दिया। इन्होंने कई सार्वजनिक संगठनों के गठन में अपना योगदान दिया। इनमें अहमदनगर शिक्षा समिति, पूना सार्वजनिक सभा और प्रार्थना समाज जैसे महत्त्वपूर्ण संगठन शामिल थे। 
⬧  रानाडे ‘दक्कन एजुकेशनल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक थे। 
⬧  इन्होंने एंग्लो-मराठी समाचार पत्र ‘इन्दुप्रकाश’ का भी सम्पादन किया। 
⬧  इन्होंने विधवा पुनर्विवाह, मालगुजारी कानून, राजा राममोहन राय की जीवनी, मराठों का उत्कर्ष, धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आदि रचनाएँ लिखी। 
⬧  एक सच्चे राष्ट्रवादी के रूप में महादेव गोविंद रानाडे ने ना केवल ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का समर्थन किया, बल्कि 1885 ई. में कांग्रेस के प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग भी लिया। 
⬧  महादेव गोविंद रानाडे स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे। ये अपने जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित पदों पर आसीन रहे जिनमें बॉम्बे विधान परिषद् का सदस्य, केंद्र सरकार के वित्त समिति के सदस्य और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे पद शामिल हैं।
⬧  16 जनवरी, 1901 को इन्होंने इस संसार को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।
⬧  रानाडे ने विधवा-विवाह के समर्थन में शास्त्रों का संदर्भ देते हुए 'द टेक्स्ट ऑफ द हिंदू लॉ' जिसमें उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को नियम के अनुसार बताया तथा इस संदर्भ में उन्होंने वेदों के उन पक्षों का उल्लेख किया जो विधवा पुनर्विवाह को स्वीकृति प्रदान करते हैं और उसे शास्त्र सम्मत मानते हैं।

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