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इसलिए उम्र दराज पार लड़कियां बैठी है घरों में
माता-पिता की अति महत्वकांक्षी से 27 से 28 वर्ष या 32 वर्ष की उम्र की कुंवारी लड़कियां घर बैठे हैं अगर अभी भी मां-बाप नहीं जागे तो स्थितियां और विस्फोटक हो सकती हैं हमारा समाज आज बच्चों के व्यवहार को लेकर इतना सजग हो गया है कि आपस में रिश्ते ही नहीं हो पा रहे हैं।
समाज में आज 27 वर्ष से लेकर के 32 वर्ष की उम्र तक की बहुत सी कुंवारी लड़कियां घर बैठी हैं क्योंकि इनके सपने हैसियत से भी बहुत ज्यादा है इस प्रकार के कई उदाहरण हैं ऐसे लोगों के कारण समाज की छवि बहुत खराब हो रही है सबसे बड़ा मानव सुख सुखी वैवाहिक जीवन होता है पैसा भी आवश्यक है लेकिन कुछ हद तक।
पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है पहली प्राथमिकता सुखी संसार और अच्छा घर परिवार होना चाहिए।
ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तो को नजर-अंदाज करना गलत है संपत्ति खरीदी जा सकती है लेकिन गुण नहीं मेरा मानना है कि घर परिवार और लड़का अच्छा देखें लेकिन ज्यादा के चक्कर में अच्छे रिश्ते हाथ से नहीं जाने दे सुखी वैवाहिक जीवन जिए 30 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो उसमें बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं यह कथन है मैट्रिमोनी दिल्ली की सलाहकार प्रिया देशवाल का जो कि दैनिक विश्वमित्र के साथ एक बातचीत में शादी विवाह के बारे में उन्होंने चर्चा की।
विवाह सलाहकार प्रिया देशवाल कहती हैं कि आज उससे भी बुरी स्थिति कुंडली मिलान के कारण हो गई है आप सोचिए जिनके साथ कुंडली मिलती है लेकिन घर और लड़का अच्छा नहीं और जहां लड़के में सभी गुण हैं वहां कुंडली नहीं मिलती और हम सब कुछ अच्छा होने के कारण भी कुंडली की वजह से रिश्ता छोड़ देते हैं
आप सोच कर देखें जिन लोगों के 36 में से 20 या फिर 36 के 36 गुण भी मिल जाए फिर भी उनके जीवन में तकलीफ हो रही है।
क्योंकि हमने लड़के के गुण नहीं देखे, कुंडली मिलान के गुण देखें पंडितों ने पढ़े-लिखे आदर्श समाज को एक सदी और पीछे धकेल दिया है ।
कुंडली मिलान, कुंडली मिलान इस चक्कर में अच्छे रिश्ते नहीं हो पा रहे हैं l और एक कुंडली का बिजनेस आज करोड़ों रुपए का हो गया है सुबह टेलीविजन चालू कर दे ही पंडित जी आपका भविष्य बताने लग जाते हैं और उनको खुद के भविष्य का पता नहीं होता उनकी बेटियां, बेटी की आगे की स्थिति क्या होंगी आजकल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए लड़के में 24 पंच का सोना खरीदने लग जाते हैं देखते-देखते चार-पांच साल व्यतीत हो जाते हैं वह चीज अच्छा या जॉब के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं l
आप कहती हैं कि लड़के देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है खुद का मकान है कि नहीं अगर है तो फर्नीचर कैसा है घर में कमरे कितने हैं गाड़ी है कि नहीं तो कौन सी है रहन-सहन खानपन कैसा है
कितने भाई बहन हैं
बंटवारे ने मां-बाप किन के गले पड़े हैं बहन कितनी है उनकी शादी हुई है कि नहीं ,मां-बाप का स्वभाव कैसा है, घरवाले नाते रिश्तेदार, आधुनिक ख्याल आते हैं कि नहीं ,बच्चे का कद क्या है रंग रूप कैसा है शिक्षा कमाई बैंक बैलेंस कितना है लड़का-लड़की सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं कि नहीं उसके कितने दोस्त हैं सब बातों पर पूछताछ पूरी होने के बाद भी कुछ प्रश्न पूछने में और सोशल मीडिया पर वार्तालाप करने में और समय व्यतीत हो जाता है।
हालात को क्या कहें मां-बाप की नींद ही खुलती है 30 की उम्र पर विचार 5 साल की है दौड़-धूप बच्चों की जवानी को बर्बाद करने के लिए काफी है इस वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं और मां-बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर चूर कर देते है।
एक समय था जब खानदान देखकर रिश्ते होते थे वह लम्बे भी चलते थे ; समधी समधन में मान मनुहार थी सुख दुख में साथ था , रिश्ते नाते के अहमियत का एहसास था चाहे धन माया कम थी ; मगर खुशियां घर आंगन में झलकती थी, कभी कोई ऊंची नीची बात हो जाती थी तो आपस में बड़े बुजुर्ग संभाल लेते थे l तलाक शब्द रिश्तों में था ही नहीं , दांपत्य जीवन खट्टे मीठे अनुभव में भी बीत जाया करता था ; दोनों एक दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे और पोते पोतियो में संस्कारों के बीज भरते थे , अब कहां है वह संस्कार आंख की शर्म तो इतिहास हो गई, नौबत आ जाती है रिश्तो में समझौता करने की , प्रिया देशवाल का कहना है कि लड़का लड़की अपने समाज के नहीं होंगे तो भी चलेगा , ऐसी बातें भी सामने आ रही है आज समाज की लड़कियों और लड़के खुलेआम दूसरी जाति की तरफ जा रहे हैं और दोष दे रहें है समाज में अच्छे लड़के लड़कियां मेरे लायक नहीं है कारण लड़कियां आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई है।
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