आजकल एकदूसरे की तरक्की देखकर कुछ लोग जलते क्यों है चाहे वह अपने हो या पराए अहम् से, काम / क्रोध / लोभ / ईर्ष्या / मोह / राग - द्वेष उत्पन्न होते है !!

जिस इंसान में खुद में बुराई होंगी, ... वही ऐसा काम कर सकता है !! .... मैंने अपनी अधिकतर पोस्ट में, सब बुराइयों की जड़, अहंकार / अहम् के बारे में वर्णन किया है !! .... ये जलन भी , उसी वृक्ष की एक टहनी है, जिसकी बीज / जड़, मैं रुपी अहम्-अहंकार है !! ..... इसी अहम् से, काम / क्रोध / लोभ / ईर्ष्या / मोह / राग - द्वेष उत्पन्न होते है !!

अगर एक भाई तरक्की कर रहा है / एक पडोसी तरक्की कर रहा है / समाज के अधिकतर लोग तरक्की कर रहे है / कोई आदमी अरब पति बन गया - तो भाई उसे बनने दो, .... अगर तुम में सामर्थ्य और योग्यता है, तो तुम भी बन जाओ !! .... और अगर परिस्थितियाँ तुम्हारे अनुकूल नहीं है, किसी भी कारण से, तो जल - भून के ईर्ष्या रख के होगा भी क्या ?? अपना ही नुक्सान करोगे, अपना समय व्यर्थ गवांओगे !!

इसलिए जो ईर्ष्या करता है, उसमे अहंकार है किसी न किसी बात का !! .... जो वह देखना नहीं चाहता !! .... और जब दूसरा आगे बढ़ता है, और उसे पसंद नहीं आता, तो यह उसके बस उसी अहम् / मैं रुपी अहंकार को चोट पहुँचती है, कि मैं तो ऐसा कर नहीं पाया, दूसरा कैसे कर गया / या आगे बढ़ रहा है !!

इसलिए अपने अंदर के इस अहम् को पहचानिये। .... जीवन छोटा है, और बहुत काम है करने को , व्यर्थ समय न गँवाकर, अपना और किसी दूसरे का सहयोग करे, जो आनंद मिलेगा, वह जलन और तरक्की में भी नहीं होगा !!

बाकी एक बात यहाँ और रखूँगा, जो मैंने काफी देखा है, जब दोनों भाई / या दो पक्ष अपने आप में बुरे नहीं होते, ... पर बहुत कुछ उनके बिच कुछ सही नहीं चलता / मन मुटाव होता है / गलतफहमियां होती है - तो उसका कारण कोई पुराना प्रारब्ध भी होता है, .. जब सब सही होके भी, अनजाने में परिस्थितियां ऐसे बन जाती है, कि बस न चाहते हुए भी , एक दूसरे से नाराज़गी और दुर्भावना बढ़ जाती है !! ...... तो भी अंत में अगर अपना स्वाभाव सही है, तो काफी हद तक काफी बातों पर नियंत्रण किया जा सकता है !!

अनुरोध के लिए धन्यावद !!

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