पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में। 9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

**🖋️२**  
मन गांव में ही रह गया, शरीर शहर का वासी है।  
ताज़ा बस, ख़बर यहाँ, तासीर बासी_बासी है।।  

**🖋️३**  
दो जन दोनों कमाने वाले, बच्चों को कौन संभाले।  
टारगेट के पीछे भाग रहे हैं, तन को कर, बीमा के हवाले।।  

**🖋️४**  
यारों का न संग रहा, न न्योता न व्यवहार।  
खुद के घर जाते हैं बन, जैसे रिश्तेदार।।  

**🖋️५**  
कर बंटवारा एकड़ बेचा, वर्ग फीट के दरकार में।  
बिछड़े, पिछड़ा कह के, खो गए अगड़ों के कतार में।।  

**🖋️६**  
शुरुवाती; मज़ा बहुत है, एकाकी; स्वप्न; संसार में।  
मुसीबत हमेशा हारा है, संगठिक संयुक्त परिवार में।।

**🖋️७**  
मात, पिता न आने को राजी, गांव में नौकरी है कहां जी।
जिनके  पास  दोनों  है बंधुओं, उनका जीवन है शान में 

पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  
9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  

By~विपिन शर्मा 🖋️🖋️

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