Bharatiya Janata Party (BJP) is one of the major political parties in India and what's future growth continuously


बंगाल में और बढ़ी भाजपा के लिए मुश्किलें
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पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद भाजपा के पास जश्न मनाने का मौका था। विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे थे कि राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के लिए फिलहाल मुश्किलों का अंत नहीं हुआ है। भाजपा भले ही चुनाव हार गई मगर उसे राज्य का मुख्य विपक्षी पार्टी बनने का बड़ा अवसर मिला। अवसर उस राज्य में मिला जहां कुछ साल पहले लोग भाजपा के सियासी ताकत बनने में भी संदेह व्यक्त करते थे। मगर उसी राज्य में पार्टी के विधायकों की संख्या तीन से 74 हो गई। नतीजे बता रहे थे कि भविष्य में भाजपा के पास बांग्लाभाषी राज्य में सत्ता परिवर्तन के लिए असीम संभावनाएं बरकरार हैं।

हालांकि नतीजे आने के बाद राज्य भाजपा में जो कुछ हो रहा है, वह दूसरा ही संकेत दे रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि भाजपा राज्य में अपना मजबूत वजूद कायम रख पाएगी भी या नहीं। नतीजे आने के बाद से ही भाजपा में असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा। चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में जाने वालों की भीड़ थी। अब नतीजे आने के बाद भाजपा की जुटाई गई भीड़ किसी भी कीमत पर तृणमूल कांग्रेस में अपनी वापसी कराने केलिए बेकरार है। इनमें कई विधायक तो कई चुनाव हारने वाले उम्मीदवार भी शामिल हैं। हालत यह है कि तृणमूल कांग्रेस अब निर्णय कर रही है कि वापसी की अपील करने वालोंं से किसकी अपील सुनी जाए। इसी क्रम में तृणमूल कांग्रेस ने कद्दावर नेता मुकुल रॉय को हरी झंडी दी है।

जाहिर तौर पर मुकुल रॉय की घर वापसी से भाजपा मेंं बेचैनी है। बेचैनी इसलिए कि वह मुकुल रॉय ही थे, जिसने तृणमूल कांग्रेस से दामन छुड़ाने के बाद भाजपा को मजबूत करने की सियासी विसात बिछाई। उनकी व्यूहरचना के कारण ही लोकसभा चुनाव में डेढ़ दर्जन सीटें जीत कर भाजपा ने सबको दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर किया। इसी नतीजे से एकबारगी लगा कि राज्य की सत्ता से तृणमूल कांग्रेस की विदाई हो सकती है। इसी नतीजे के कारण तृणमूल में भगदड़ मची और पार्टी के कई दिग्गज नेताओंं ने भाजपा का दामन थामा। अब भाजपा के वही शिल्पकार एक बार फिर से अपने पुराने खेमे में वापस लौट गए हैं। जाहिर तौर पर इससे भाजपा को लगे झटके का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ कि नतीजे आने के साथ ही पार्टी में भगदड़ मच गई? जाहिर तौर पर भगदड़ का एक बड़ा कारण भाजपा का सत्ता में न आना रहा। वह इसलिए कि चुनाव से पहले पाला बदलने वाले कई नेताओं का बस सत्ता के लोभ में ही हृदय परिवर्तन हुआ था। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस में वापसी की लाइन लगना कोई बड़ी बात नहीं है। हालांकि ऐसे नेताओं से मुकुल रॉय की तुलना नहीं कर सकते। वह इसलिए कि मुकुल तृणमूल के कद्दावर नेताओं में से थे। उनकी पार्टी में चलती भी थी। फिर मुकुल ने दूसरे नेताओं की तरह ठीक चुनाव से पहले पाला नहीं बदला था। उन्होंने बहुत पहले तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ कर भाजपा की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने का काम शुरू किया था। उनके कद और उनकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा छोडऩे की सुगबुगाहट के बीच ही उन्हें खुद प्रधानमंत्री ने फोन कर मनाने की कोशिश की थी।

अब सवाल है कि मुकुल रॉय का अचानक भाजपा से मोहभंग क्यों हो गया। जाहिर तौर पर इसका बड़ा कारण विधानसभा चुनाव था। इस चुनाव में रणनीति बनाने से ले कर टिकट बांटने तक में मुकुल रॉय को पार्टी ने महत्व नहीं दिया। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी नेतृत्व को लगा कि चुनाव होते ही सत्ता उसके हाथ लग जाने वाली है। इसी आत्मविश्वास में पार्टी ने न सिर्फ मुकुल रॉय की अनदेखी की, बल्कि चुनावी रणनीति तैयार करते समय भी उनकी राय को महत्व नहीं दिया। टिकट बंटवारे के निर्णय से भी उन्हें दूर रखा गया। हद तो तब हो गई जब गंभीर रूप से अस्वस्थ उनकी पत्नी का किसी ने हाल चाल पूछना जरूरी नहीं समझा।

राज्य में भाजपा के लिए मुश्किलें दोहरी हैं। बाहर से आए नेताओं में यह संदेश गया है कि पार्टी में उनके लिए करियर बनाना इतना आसान नहीं है। इसके उलट पार्टी के पुराने और जमीनी नेताओं-कार्यकर्ताओं में संदेश गया है कि पार्टी नेतृत्व को उनकी त्याग और लगन की परवाह नहीं है। चुनावी हिंसा के शिकार एक बहुत बड़े वग में यह संदेश गया है कि पार्टी को उनकी कोई परवाह नहीं है। सवाल है कि क्या कार्यकर्ताओं का यह संदेश गैरवाजिब है? आखिर क्यों राज्य में दशकों से संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता और नेता उन्हीं का नेतृत्व स्वीकार करें जिनके खिलाफ उन्होंने संघर्ष किए हैं।

अंत में पश्चिम बंगाल का घटनाक्रम बताता है कि महज सत्ता के लिए भीड़ जुटाने का अपना सियासी नुकसान है। भाजपा इसे पश्चिम बंगाल में झेल रही है। दलबदल करने पार्टी का दामन थामने वाले फिर से दलबदल करने केलिए बेकरार हैं। जाहिर तौर पर पार्टी नेतृत्व को चुनावी जीत और कार्यकर्ताओं के सम्मान के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। ऐसा नहीं करेंगे तो जो अभी बंगाल में हो रहा है, वही अन्य राज्यों में होगा। बंगाल के घटनाक्रम बताते हैं कि भाजपा फिर से वहीं पहुंचती दिख रही है जहां से उसने राज्य में चलना शुरू किया था।
मुकुल राय की तृणमूल में वापसी के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा घर का लडक़ा घर आ गया है। जाहिर तौर पर अभी कई और घर के लडक़े घर आएंगे।

 सवाल यह है कि राज्य में घर वापसी का यह सिलसिला कहीं भाजपा को बेघर न कर दे।
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