त्यौहार के बावजूद भी अभी तक शिक्षा विभाग का वेतन नहीं आया यह भविष्य के स्पष्ट संकेत है

त्यौहार के बावजूद भी अभी तक शिक्षा विभाग का वेतन नहीं आया। यह भविष्य के स्पष्ट संकेत है, युवाओं के लिए वैकेंसी का पता नहीं कभी विभाग कहता कि सरप्लस, कभी कहता है कि नया विज्ञापन शीघ्र निकालेंगे।
एक तरफ का जोर शोर से निजीकरण का नारा दिया जा रहा है जबकि वास्तव में निजीकरण है ही नहीं, यह तो केवल संपत्ति को बेचना है , निजीकरण और बेचने के बीच के अंतर को समझने की आवश्यकता है।

इन दोनों विषय पर अगर मैं लिखूंगा तो लिख थोड़ा लंबा हो जाएगा । इसलिए इसको यहीं विराम देता हूं अब असल पर आते हैं मूल बात पर।

सबसे पहले छोटे-छोटे विभागों को किस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग का नंबर आएगा सवाल उठता है। कि बेसिक शिक्षा विभाग को पहले निशाना क्यों नहीं बनाया गया, क्योंकि आपकी संख्या बहुत ज्यादा है। और आप लोग हर गांव में शहर की हर गली में हैं । इसलिए प्रायोजित तरीके से आप के खिलाफ सोशल मीडिया पर फेक तस्वीरें डालकर पहले आपको आईटी सेल के द्वारा बदनाम किया गया और जनता के द्वारा आप के खिलाफ एक माहौल तैयार किया गया जनमानस में।
फिर दूसरे चरण की शुरुआत होती है स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों को आपके प्रतिद्वंदी के रूप में धीरे-धीरे खड़ा किया जा रहा है। कायाकल्प वास्तव में कुछ नहीं है  प्रधानों को आपके प्रतिद्वंदी के रूप में खड़ा करने की साजिश है। नहीं तो जितना कायाकल्प हुआ उसके ढंग से जांच करा लीजिए अभी वास्तव में पता चल जाएगा कि कितना बजट जारी हुआ था, और कितना लगा है और गुणवत्ता क्या है।

एक तरफ धीरे-धीरे स्थानीय प्रतिनिधियों का आपके कार्यक्षेत्र में दखल बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ विद्यांजलि टू के नाम से NGO की चरणबद्ध ढंग से एंट्री कराई जा रही है क्योंकि सीधे अभी आपसे वह नहीं टकराएंगे।
सवाल उठता है कि इसका निराकरण क्या हो सकता है। तो जाहिर सी बात है। आप के हितों पर सबसे पहले आपका संगठन ही बात करेगा।
 चाहे वह प्राथमिक संगठन हो जूनियर का हो अटेवा हो या अन्य संगठनों सभी संगठन की मूल मांगे आप के हित में ही रहेंगे।

अब कुछ लोग कहेंगे कि संगठन तो कुछ कर नहीं पा रहा सरकार उनकी बात सुनती नहीं है। तो भाई इसके जिम्मेदार भी आप ही लोग हो मुझे यह बताएं क्या किसी संगठन के पास कोई न्यायिक अधिकार है या कोई बहुत बड़े राजनीतिक अधिकार है केवल माध्यमिक शिक्षक संघ को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी संगठन के पास राजनीतिक प्रतिनिधि भी अपने नहीं हैं।
ऐसे में संगठन ज्ञापन दे सकता है और धरना दे सकता है। जिसे मानना ना मानना सरकार के ऊपर निर्भर करता है। तो हर संगठन अपनी क्षमता के अनुसार धरना भी दे रहे हैं। और बार-बार हर मांग को सरकार के पटल पर रख भी रहे हैं।
एक सवाल उठता है कि उनकी बातें क्यों नहीं मानी जा रही हैं साहब यह बताएं जब कोई संगठन धरना देता है तो कितने परसेंट लोग घर से निकलते हैं।
माफ कीजिएगा अन्यथा ना लीजिएगा एक महिला घर से 500 किलोमीटर दूर जाकर B.Ed बीटीसी कर सकती है। 200 किलोमीटर दूर नौकरी कर सकते हैं। लेकिन उसी शहर में 5 किलोमीटर मुख्यालय पर अपने संगठन के धरने में आने के लिए उसके पास 500 बहाने होते हैं।
अगर मैं पुरुषों की बात करूं तो दिल्ली से लेकर दौलताबाद तक अपने रिश्तेदारी निमंत्रण, दोस्त मित्र के यहां पहुंच जाएंगे। लेकिन धरने में आने के लिए हजार बहाने और दुनिया के सबसे व्यस्त आदमी हो जाते हैं।
जबकि आपके सारे काम और आपकी पहचान जिस से है उसके लिए आपके पास समय नहीं रहता है। कल
 नौकरी नहीं रहेगी तो बाकी चीजें कितनी काम आएंगे अब भलीभांति परिचित हैं। 
जिस तरह से एयर इंडिया वाले एक ही दिन में सड़क पर आ गए हैं ,रेलवे ,बिजली विभाग सभी के बुरे दिन शुरू हो गए हैं कुछ दिन पहले जब 108 और 102 एंबुलेंस सेवा को निजी कंपनी ने निकालना शुरू कर दिया । तो उनके कर्मचारियों ने लखनऊ में 3 दिन तक धरना दिया आज उनमें से कंपनी ने 50% कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया ।आज वह भुखमरी के कगार पर आ गए।

मेरे कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि आप जिस भी विभाग में कार्यरत हैं जब आपका संगठन आप के हितों के लिए कोई भी धरना दे रहा हो उस दिन आप सब काम छोड़ कर धरने में उसी प्रकार जाएं जिस प्रकार आप प्रथम नियुक्ति के टाइम अपने विभाग में नियुक्ति पत्र लेने के लिए गए थे, क्योंकि इससे ज्यादा जरूरी काम आपके लिए दूसरा नहीं हो सकता।
किसी भी संगठन के पदाधिकारियों की पहचान सिर्फ आपसे है। आपके की तरह वह भी इंसान हैं। वह कोई लड़ाई तभी लड़ सकते हैं। जब आप पर्याप्त संख्या में उनके साथ खड़े रहे।

धरने से मिलेगा क्या?
धरने से सरकार आपके खिलाफ कोई भी एक्शन लेने से पहले 10 बार सोचेंगे ,सरकार के ऊपर नैतिक दबाव हमेशा बरकरार रहेगा अपना राजनीतिक पृष्ठभूमि खिसकने का डर हमेशा रहेगा । आपके विभाग को निजीकरण करने से पहले 10 वार सोचना पड़ेगा ।
50 साल रिटायरमेंट लागू करने से पहले उसको आत्ममंथन करना पड़ जाएगा। पुरानी पेंशन थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन बार-बार सरकार को इस पर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ जाएगा। ऐसे ही बहुत कुछ और भी है जो आपके धरने और संगठन  से ही तय  होते हैं।
बातें और भी बहुत से हैं , पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी इसलिए मेरे कहने का अर्थ है सभी लोग समझ गए होंगे अब किसी भी धरने पर पूरी ताकत के साथ सब लोग प्रतिभाग करें अपनी और अपने आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए।
मुकेश राय

संघे शक्ति सर्वदा

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