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#जीपीएफ_यानि_भविष्यनिधि_और_पेंशन_की_टेंशन ?
*देशभर में क्यों मचा है पेंशन पर कोहराम ??*
क्या है, पुरानी लाभ पेंशन व्यवस्था,1972 ?
( पुरानी पेंशन व्यवस्था (OPS) और नयी पेंशन व्यवस्था (NPS) में अन्तर )
उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों में पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन तेज होता जा रहा है। कर्मचारियों की मांग है कि 01 जनवरी 2004 से लागू NPS (न्यू पेंशन स्कीम/नेशनल पेंशन स्कीम/अंशदायी पेंशन योजना) की जगह OPS (पुरानी पेंशन योजना/लाभदायी पेंशन योजना) को लागू किया जाए, ताकि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी के परिवार का भविष्य सुरक्षित हो सके -----------------------
क्यों, कैसे और कब देश विभिन्न राज्यों में लागू की गयी NPS ??????
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भारत सरकार द्वारा पेंशन क्षेत्र के विकास एवं विनियमन के नाम पर 10 अक्टूबर 2003 को "पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण"(PFRDA) की स्थापना की गयी जिसके द्वारा 01.01.2004 के बाद नियुक्त होने वाले केन्द्रीय अधिकारियों/कर्मचारियों/शिक्षकों के लिए NPS लागू की गयी, जबकि सच्चाई यह थी कि केंद्र सरकार कर्मचारियों को बुढ़ापे में दी जाने वाली पेंशन की जिम्मेदारी से खुद को बचा रही थी। केंद्र सरकार द्वारा NPS लागू किये जाने के बाद विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा भी केंद्र के दबाब में भिन्न-भिन्न तिथियों में उक्त व्यवस्था को अपने कर्मचारियों हेतु स्वीकार कर लिया गया। राज्यों में NPS लागू होने की तिथि --------
तमिलनाडु-- 01.04.2003
हिमांचल प्रदेश-- 15.05.2003
राजस्थान-- 01.01.2004
पंजाब-- 01.01.2004
आंध्र प्रदेश-- 01.09.2004
छत्तीसगढ़-- 01.11.2004
झारखण्ड-- 01.12.2004
मध्य प्रदेश-- 01.01.2005
ओड़िसा-- 01.01.2005
मणिपुर-- 01.01.2005
असम-- 01.02.2005
*उत्तर प्रदेश-- 01.04.2005*
गुजरात-- 01.04.2005
गोवा-- 05.08.2005
बिहार-- 01.09.2005
उत्तरांचल-- 01.10.2005
महाराष्ट्र-- 01.11.2005
हरियाणा-- 01.01.2006
कर्नाटक-- 01.04.2006
सिक्किम-- 01.04.2006
अरुणांचल प्रदेश-- 01.01.2008
जम्मू&कश्मीर-- 01.01.2010
नागालैंड-- 01.01.2010
मेघालय-- 01.04.2010
मिजोरम-- 01.09.2010
केरल-- 01.04.2013 कांग्रेस सरकार ने शुरू की
त्रिपुरा-- 01.07.2018 भाजपा सरकार ने शुरू की।
पश्चिम बंगाल - आज तक O.P.S यानि पुरानी पेंशन ब्यवस्था है।
वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल राज्य को छोड़कर सभी राज्यों एवं केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए NPS लागू है। सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि अर्धसैनिक बलों के जवानों के भविष्य को भी NPS के हवाले कर दिया गया है। पुरानी पेंशन व्यवस्था देश में केवल दो समूहों के लिए लागू है---
*पहला*- सेना के लिए परन्तु 01.01.2004 के बाद नौकरी में आये अर्धसैनिक बलों के लिए नहीं /
*दूसरा*- सांसदों/विधायकों के लिए,इनके तो मज़े ही मज़े
एक नहीं कई- कई पेंशन मिलती हैं /
*तीसरा* – माननीय जजों के लिए , 1982 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 01.01.2004 के बाद नौकरी में आये माननीय जजों को पुरानी पेंशन मिल रही है
यह सुखकर है कि ये लोग कम से कम अपने लिए न्याय पाने में सफल रहे ।
मेरा मानना है कि उसके लिए भी कुछ ही ने संघर्ष किया होगा शेष ने आपकी तरह तमाशा देखा होगा
*क्या है पुरानी और नई पेंशन स्कीम में अन्तर ??*
*1 .GPF की सुविधा*
पुरानी पेंशन योजना के अन्तर्गत शिक्षक और कर्मचारी के लिए GPF की सुविधा उपलब्ध है जिसमें कर्मचारी के वेतन(बेसिक) का 10% हिस्सा जमा होता है, जिस पर उसे निश्चित रूप से ऊँची दर पर ब्याज प्राप्त होता है। कर्मचारी अपनी आवश्यकता के अनुसार आसानी से GPF पर लोन प्राप्त कर सकता है जिसका उसे कोई ब्याज नहीं देना पड़ता।
नई पेंशन योजना में GPF की सुविधा प्राप्त नहीं है।
*2 .पेंशन के लिए कटौती*
पुरानी पेंशन योजना में पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती है और सेवानिवृत्त कर्मचारी को पेंशन देना पूर्ण रूप से सरकार की जिम्मेदारी होती है।
जबकि नयी पेंशन योजना में वेतन से प्रति माह बेसिक+डी०ए० के योग के 10% की कटौती निर्धारित है और कटौती के बराबर ही सरकार भी अंशदान करती है। केंद्र और कुछ राज्यों ने सरकारी अंशदान 10 की जगह बढाकर 14 प्रतिशत कर दिया है जिसमे कार्मिक को फायदा न मिलकर कोर्पोरेट को ही मिला है।
परन्तु इतने के बाद भी कर्मचारी को निश्चित पेंशन की कोई गारण्टी नहीं होती है। और आपको साफ़ साफ़ बोलू तो NPS में कुछ न मिलेगा ,सब बर्बाद होना तय है स्टाम्प पे लिख कर दे सकता हूँ।
*3 .पेंशन की निश्चित राशि*
पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेन्ट के समय एक निश्चित पेंशन (अन्तिम वेतन का 50%) की गारेण्टी होती है तथा साथ ही साथ DA की बढ़ी दरों एवं वेतन आयोग का लाभ भी कर्मचारी को प्राप्त होता है।
जबकि नयी पेंशन योजना में पेंशन कितनी मिलेगी यह सुनिश्चित नहीं होता है, यह पूरी तरह शेयर मार्केट व बीमा कम्पनी पर निर्भर है ।
*4 .पेंशन देने की जिम्मेदारी*
पुरानी पेंशन सरकार देती है जबकि नयी पेंशन बीमा कम्पनी देगी । यदि कोई समस्या आती है तो हमे सरकार से नहीं बल्कि बीमा कम्पनी से लड़ना पड़ेगा।
*5 . ग्रेच्युटी*
पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी (अन्तिम वेतन के अनुसार 16.5 माह का वेतन) मिलता है जबकि नयी पेंशन वालों के लिये ग्रेच्युटी की कोई व्यवस्था नहीं थी परन्तु सरकार ने बड़े आंदोलनों के बाद हाल ही में अस्थायी व्यवस्था की
उसके बाद अब स्थायी व्यवस्था हो चुकी है
*6 . डेथ ग्रेच्युटी*
पुरानी पेंशन वालों को सेवाकाल में मृत्यु होने पर डेथ ग्रेच्युटी मिलती है जिसे 7वें पे कमीशन ने 10लाख से बढाकर 20लाख कर दिया है।
जबकि नयी पेंशन वालों के लिए डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा समाप्त कर दी गयी है। परन्तु सरकार ने बड़े आंदोलनों के बाद अस्थायी व्यवस्था की , उसके बाद अब स्थायी व्यवस्था हो चुकी है
*7 .पारिवारिक पेंशन*
पुरानी पेंशन में आने वाले लोंगों को सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन मिलती है जबकि नयी पेंशन योजना में पारिवारिक पेंशन को समाप्त कर दिया गया था परन्तु बाद में संसोधन कर सेवाकाल में मृत्यु होने की दशा में पारिवारिक पेंशन की व्यवस्था को अस्थायी बहाल कर दिया गया है।
*8 . DA एवं वेतन आयोग का लाभ*
पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छह माह बाद महँगाई तथा गठित होने वाले वेतन आयोगों का लाभ भी मिलता है जबकि नयी पेंशन व्यवस्था 60 वर्ष की आयु में जो पेंशन फिक्स कर दी जायेगी सेवनिवृत्तकर्मी को मृत्यु होने के समय तक उतनी ही राशि प्राप्त होती रहेगी, DA की बढ़ी दरों एवं वेतन आयोगों के गठन के लाभ से पेंशनधारी वंचित रहेंगे।
*9 .आयकर की अदायगी*
पुरानी पेंशन योजना में जी0 पी0 एफ0 निकासी ( रिटायरमेंट के समय) पर कोई आयकर नहीं देना पडता था जबकि नयी पेंशन योजना में जब रिटायरमेंट पर जो अंशदान का 60% वापस मिलेगा उसपर आयकर लगता था । वर्तमान में तीस प्रतिशत टेक्स कटता ही था
अब नए संसोधन के टैक्स हाल ही में छोड़ा है
पुरानी पेंशन व्यवस्था के मुख्य तथ्य—
➡ पुरानी पेंशन व्यवस्था का शेयर मार्केट से कोई संबंध नहीं था।इसके अन्तर्गत सेवानिवृत्त कर्मचारी को पेंशन देना सरकार का दायित्व होता था।
➡ पुरानी पेंशन में हर छः माह पर डीए जोड़ा जाता था।
➡ पुरानी पेंशन व्यवस्था में गारंटी थी कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा उसे पेंशन के तौर पर मिलेगी और अगर किसी की आखिरी मूल वेतन 50 हजार है तो उसे 25 हजार पेंशन मिलती थी. इसके अलावा हर साल मिलने वाला डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी।
➡ नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था जिसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था। जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था एवं सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी।
➡ पुरानी पेंशन योजना में ग्रेच्युटी एवं डेथ ग्रेच्युटी का प्राविधान है।
➡ पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से किसी भी प्रकार की कटौती नहीं की जाती थी।
नई पेंशन व्यवस्था के मुख्य तथ्य—
➡ न्यू पेंशन स्कीम एक म्यूनचुअल फंड की तरह है. ये शेयर मार्केट पर आधारित व्यवस्था है।
➡ पुरानी पेंशन की तरह इस पेंशन में हर साल डीए नहीं जोड़ा जाता यह फिक्स रहती है।
➡ कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले।
➡ एनपीएस कर्मचारी या अधिकारी जिस दिन वह रिटायर होता है, उस दिन जैसा शेयर मार्केट होगा, उस हिसाब से उसे 60 प्रतिशत राशि मिलेगी. बाकी के 40 प्रतिशत के लिए उसे पेंशन प्लान लेना होगा, पेंशन प्लान के आधार पर उसकी पेंशन निर्धारित होगी।
➡ नई व्यवस्था में कर्मचारी का जीपीएफ एकाउंट बंद कर दिया गया है
*विरोध इन बातों पर है*—
1 जनवरी 2004 को जब केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को खत्म कर नई व्यवस्था लागू की तो एक बात साफ थी कि अगर राज्य चाहें तो इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं। मतलब *व्यवस्था स्वैच्छिक थी परन्तु उ प्र में इसे 1/4/ 2005 को लागू कर दिया । एक मात्र राज्य पश्चिम बंगाल में आज भी पुरानी व्यवस्था ये लागू है*।
*पुरानी पेंशन व्यवस्था नई व्यवस्था की तरह शेयर बाजार पर आश्रित नहीं है. लिहाजा उसमें जोखिम नहीं था*।
न्यू पेंशन स्कीम लागू होने के 16 साल बाद भी यह व्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है।
नई स्कीम में कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले. क्योंकि शेयर बाजार से चीजें तय हो रही हैं।
नई व्यवस्था के तहत 10 प्रतिशत कर्मचारी और 10 प्रतिशत सरकार देती है. लेकिन जो सरकार का 10 प्रतिशत का बजट है, वही पूरा नहीं है। सिर्फ केंद्र कर्मचारी के मामले में सरकारी अंशदान 14% दिए जाने के आदेश हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में लगभग 15 लाख कर्मचारी है. अगर उनकी औसत सैलरी निकाली जाए तो वह 40 हजार के आसपास है. इस हिसाब से कर्मचारी का 4000 रुपए अंशदान है. लेकिन इतना ही अंशदान सरकार को भी करना है. मोटे तौर पर सरकार के ऊपर कई हजार करोड़ का भार आ रहा है और दोनों अंशदान शेयर बाज़ार में सट्टा खेल रहे हैं, असुरक्षित है।
यदि शेयर बाजार सुरक्षित है तो सरकार को वेतन की जगह शेयर ही दे देना चाहिए और नेताओं को भी वेतन भत्ते की जगह शेयर देने चाहिए।
नई व्यवस्था के तहत मान लीजिए अगर किसी की पेंशन 2000 निर्धारित हो गई तो वह पेंशन उसे आजीवन मिलेगी, उसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होगा।
पुरानी व्यवस्था में ऐसा नहीं था, उसमें हर साल डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी।
*एन.पी.एस. विरोध की वजह* शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था को लेकर है। जिसमें निश्चित पेंशन राशि की कोई गारंटी नहीं है। कर्मचारियों का कहना है कि मान लीजिए कि एक कर्मचारी एक लाख रुपये जमा करता है और जिस दिन वह रिटायर होता है उस दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपये मिलेंगे और बाकी 4 हजार में उसे किसी भी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी। इसमें कोई गारंटी नहीं है; परन्तु पहले जो व्यवस्था थी, *पुरानी लाभ पेंशन योजना में नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था जिसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था। जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था और सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी। परन्तु नई व्यवस्था में जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है*।
समझ में नहीं आता है कि NPS में सुधार की अवधारणा वाले क्या-क्या सुधारेंगे।
*पुरानी पेंशन का संकल्प,*
*यही है इकलौता विकल्प*
*आओ साथ चले , पेंशन विहीनों से जुड़े*।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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टीम अटेवा 🙏🙏🙏🙏
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