अब तक *भारत* की *पहचान* एक *बड़े बाजार* भर की थी, लेकिन *रुस-यूक्रेन युद्ध* और *भारत* के *रुस* को *खुले समर्थन* ने *पूरा मामला* ही *पलट* कर रख दिया है। *मोदी-जयशंकर* की *कूटनीति* ने *कमाल* कर दिया है ।
पिछले कुछ दिनों से *अमेरिका* और *तमाम यूरोपीयन देशों* के *delegates* ताबड़तोड़ *दिल्ली* पहुँच रहे हैं ।
*भारत* के *रक्षा और विदेश मंत्री* का *स्वागत* करते *स्वयं अमेरिकन राष्ट्रपति* को *दुनिया* ने देखा। इतनी *आवभगत* क्यों ?
जबकि *एस जयशंकर* सरेआम *अमेरिका* में ही जाकर *अमेरिका* के *मानवाधिकार उल्लंघन* पर *खरी-खोटी* सुना रहे। *जर्मन delegates* को पिछले दिनों ही *दिल्ली* में बिठाकर *उनके मुँह* पर *रुस* से *तेल खरीदने* के *मामले* में *आइना* दिखाया।
*अचानक* हो रहे इस *अभूतपूर्व घटनाक्रम* का *एकमात्र कारण* है *भारत* 🇮🇳 का *रुस* को *खुला समर्थन !!*
*रुस* के पीछे *दुनिया* का *मैन्युफैक्चरिंग ग्राउण्ड चीन* खड़ा है तथा *बगल में* खड़ा है *विश्व* का *सबसे बड़ा हथियार आयातक* और *135 करोड़ नागरिकों* का *अकेला बाजार भारत….*
*भारत* का *राजनैतिक नेतृत्व खम ठोककर बिना प्रतिबंधों की परवाह* किए *रुस* से *ताबड़तोड़ तेल गैस का आयात* बढ़ा रहा है !
जबकि *पड़ोस* में *एक प्रधानमंत्री की कुर्सी* मात्र इस *बात* पर चली गयी कि वो *पुतिन* से *युद्ध बीच मिलने चला गया !*
अब *अमेरिका* इस बात की *लॉबिंग* में लगा था कि *भारत* को *G-7 बैठक* में *न बुलाया जाए* तथा *तमाम तरह के प्रतिबंध भारत पर थोपे जाएँ !!* लेकिन अब *पूरा गेम पलटता हुआ* दिख रहा है...
*BRICS* की *बैठक चीन में* होनी है और *चीन* चाह रहा कि किसी तरह *मोदी* आ जाएँ ! इसका *महत्व* इस *बात* से समझिए कि *BRICS देशों* का *दुनिया* की *कुल जनसंख्या* में *40% योगदान* है, जबकि *संसार* के *कुल GDP* का *43%* अकेले इन *एशियाई देशों* के पास है ! अर्थात् *आधी दुनिया* को *खरीदने* लायक *सामर्थ्य…*
अब *रुस* की *मंशा* है कि इस बार *अमेरिका* का *सारा खेल* ही *समाप्त* हो जाए ! वह *चीन* की *भारत* से *मित्रता* कराने पर *तुला* है...
पूरी *सम्भावना* है कि *BRICS देशों* की *अलग मुद्रा* बनेगी जो *दुनिया* के *कुल 50% ट्रान्जैक्शंस आपस में ही* कर लेंगें ! *लोन* बाँटने के लिए *WTO/IMF* की जगह *अपनी संस्था विकसित* करेंगे और *रेटिंग एजेन्सी* भी *अपनी* होगी !
*भारत* की *साख* अभी *इतनी अच्छी* है कि *BRICS* के *अंदर* इसकी *उपस्थिति मात्र से* अधिकतर देशों में *इस मुद्रा* को *अपनाने और सम्मिलित होने की होड़* सी मच जाएगी !
इसलिए *रुस* किसी तरह *मोदी* को *मनाने* के लिए *चीन के साथ* लगा हुआ है ! *भारत* इसमें *मुख्य भूमिका में* है अतः *सारे पश्चिमी देश* एकदम *सहमे हुए* हैं कि कहीं *भारत चीन के निकट न आ जाए !*
*रुस* पहले से ही *वैश्विक राजनीति* का एक *माहिर खिलाड़ी* है, *चीन* के *महाशक्ति* बनने के *सपने* किसी से छुपे नहीं हैं... *चीन* को रोकने के लिए *अमेरिका भारत को* अपना *प्यादा* बनाना चाहता है यह भी सबको पता है... *दक्षिण चीन सागर* में *भारत* से *भय* के चलते आज तक *चीन* की *हिम्मत* नहीं होती *अधिकार करने की !*
*रुस भारत की रक्षा आवश्यकताओं और टेक्नोलाॅजी हस्तांतरण* में *लगभग हर समय* सहायता करता है !! ऐसे में *रुस-यूक्रेन युद्ध* में *भारत* की *शानदार कूटनीति* अवश्य ही *प्रशंसनीय* है !
*भारत* की *जनता* भी *बधाई की पात्र* है जिसने *सत्ता* में *ऐसे नेतृत्व* को *खूँटा ठोक कर* बिठाया है जो *दुनिया* में *भारत* का *जलवा बिखेर रहा,* वह भी *उस स्थिति में* जब *कोरोना और रुस-यूक्रेन युद्ध* से *कई देश दिवालिया* हो रहे हैं…
अगर *BRICS* के *मामले* में *रुस* अपनी *मंशा में सफल* होता है और अपनी *मुद्रा* लाता है तो *विश्वास* कीजिये *दुनिया* फिर *एशिया* से चलेगी… *डॉलर* के *बल* पर *कितने ही देशों का राजनैतिक और आर्थिक स्वातंत्र्य नष्ट करनेवाला "अमेरिका" डूबेगा !* उसका *आर्थिक पतन* हम *अपनी आँखों से होते देखेंगे...*
*Electric Vehicle* तमाम *तेल एक्स्पॉर्टर्स* यानि *OPEC देशों* को *धराशायी* करेगा...
*दुनिया बहुत बदलने वाली है, सम्भवतः रुस-यूक्रेन युद्ध भारत के लिए "सुअवसर" है...*
*भारत अभी अमेरिका को "ब्लैकमेल" कर सकने की स्थिति में है !*
*"बाईडेन" दहशत में है और सारा विश्व "भारत" 🇮🇳 की ओर देख रहा है ! यह क्षण "गौरवशाली" है और एक "भारतीय" होने के नाते यह पल "गर्व से अभिभूत" करता है… सम्भवतः "अमेरिका" का "अंत निकट" है... हमारा 🇮🇳 "विश्वगुरु" बनने का "स्वप्न फलीभूत" होने वाला है…*
जयश्रीराम
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