अपनी कमियाँ कौन स्वीकारता है भला...?? एक लेखक की कलम से✍️

"अपनी कमियाँ कौन स्वीकारता है भला...??"

●न पिछली साल पूरी किताबें दे पाए,इस साल तो हद हो गयी है,आप करोड़ों नामांकन चाहते हैं,लेकिन उन नामांकन के बाद भी आपको एक साल पुरानी किताबों से नए नामांकन के बच्चे भी पढ़ाने हैं।चाहे नामांकन 20% बढ़ गया हो लेकिन किताबें पुराने नामांकन से ही देंगे।

● यूनिफार्म का ₹ अभिवावक के खाते में भेज के आप वोटबैंक साधो,फिर अधिकारियों से कहो कि चेकिंग में अध्यापकों को नापो यूनिफार्म न मिलने पर।

● pre-primary को शुरू आंगनवाड़ी के साथ किया लेकिन ऐसे विद्यालय जो स्वयं ही जूझ रहे थे शिक्षकों की कमी से,उनमें से एक को नोडल और बनाकर pre-primary की जिम्मेदारी सौंप डाली।आंगनवाड़ी सिर्फ खानापूर्ति करती हैं,असल जिम्मेदारी अध्यापक ही निभा रहा।
●आधारशिला,शिक्षण-संग्रह,ध्यानाकर्षण,शिक्षक-डायरी,अनगिनत ट्रेनिंग, अरे भाई सरकारी मशीनरी इतनी जल्दबाजी में क्यों है...??? एक ट्रेनिंग हो उसका उपयोग भली-भांति क्लास में किया जा सकता है लेकिन जिस आपा-धापी में ट्रेनिंग से लेकर अन्य कार्य किये जा रहे हैं वो सिर्फ 'आंकड़े' सुधार सकती है,अधिगम का स्तर नहीं।

● शिक्षक के लिए जिस तरह आप 16 से 20 जून तक ब्लॉक-टास्क फोर्स, जिला टास्क-फोर्स, BSA, BEO, ARP, SRG, डाइट मेंटर, SDM, नायाब तहसीलदार,तहसीलदार से लेकर VDO तक को लगाते हैं, मानो शिक्षा व्यवस्था की जगह अपराधियों के लिए 'धर-पकड़ अभियान' चलाया जा रहा हो। आप चेकिंग करवाइए,हर वक़्त एक अधिकारी स्कूल में रोकने को कह दीजिये। लेकिन शिक्षकों की ट्रांसफर की मांग भी तो सुनिए,कोई दूसरे जिले में पड़ा है तो कोई अपने ही जिले में 65 KM की दूरी पर है।

● बेचारे सहायक अध्यापक पद मिलते ही बना दिये जाते हैं इंचार्ज प्रधानाध्यापक, क्या मिलता है एक इंचार्ज प्रधानाध्यापक को...??? सिवाय मानसिक शोषण के.....????
कहीं कोई जांच, तो कहीं कोई टास्क,कहीं आधार वेरिफिकेशन न होने पर वेतन रोकने की धमकी तो कहीं बार बार मीटिंग में बुलाकर कार्यवाही की चेतावनी..एक सहायक अध्यापक ये शोषण भी सहता है।आखिर क्यों उसके प्रमोशन नहीं हो सकते...?????क्या विद्यालय बिना एक प्रधानाध्यापक के चलाये जाने चाहिए...???
●बिना मानदेय के रसोइया, बिना मानदेय के शिक्षामित्र, बिना मानदेय के अनुदेशकों से काम लिया जाएगा ।यह बेगार प्रथा है जहाँ बिना पैसों के कार्य लिया जाए।

●आपने व्यवस्था online कर दी,बहुत ही अच्छी बात है लेकिन आज भी आप व्यवस्था को बदल नहीं पाए हैं।अधिकांश अधिकारी offline विजिट करेंगे,फिर आगे की कहानी सबको पता है।

● आप उत्तर प्रदेश को जाने क्यों 'पर्वतीय-इलाका (शिमला,मंसूरी)' समझने की भूल कर रहे हैं,जबकि आपको पता होना चाहिए कि अंग्रेजों के जमाने से जून की छुट्टियां गर्मी की वजह से की जाती रही हैं।क्योंकि न सिर्फ अध्यापक बल्कि बच्चे भी भीषण गर्मी का शिकार होते हैं।आप इंतजार करिए,परिणाम दिखेगा जब व्यवस्था भंग होगी और बच्चे बीमार होंगें।ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लगातार बढ़ता तापमान,आपको पूरे 30 जून तक छुट्टी करने पर मजबूर कर देगा।बाकी जिद में आप जो चाहे करें लेकिन जब पूरे प्रदेश के विद्यालय इस भीषण गर्मी में बन्द होंगे तब सबसे कम 'सुविधाओं' में जीने वाले बच्चे सरकारी स्कूल का हिस्सा होंगे।

सिर्फ इतना कहना है कि आप जो चाहे करें लेकिन प्रयास करें कि वो व्यवहारिक बना रहे,अन्यथा व्यवस्था सुधरने की जगह और बिगड़ेगी। जाने क्यों महसूस होता है कि शिक्षक हो या अभ्यर्थी,व्यवस्था उससे मशीन होने की उम्मीद करती है।एक ऐसी मशीन जिसे किसी चीज़ का भय नहीं, न गर्मी का,न सर्दी का,न व्यवहारिकता का।

बस आदेशों से भरे हुए पन्ने,एक तरफा व्यवस्था को मोड़ने की कोशिश किये जा रहे हैं।

16 जून बेसिक स्कूल
एक प्रयोग।
धन्यवाद

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