ऑनलाइन गेम चालीस हज़ार हारना फिर फाँसी लगाकर आत्महत्या हंसने-खिलखिलाने की उम्र में एक बच्चे का अवसाद में घिर जाना यूँ मौत को गले लगा लेना

ये खुली चेतावनी है …

ऑनलाइन गेम…चालीस हज़ार हारना, फिर फाँसी लगाकर ख़ुदख़ुशी…हंसने-खिलखिलाने की उम्र में एक बच्चे का अवसाद में घिर जाना, यूँ मौत को गले लगा लेना। बड़े होने के नाते मैं शर्मिंदा हूँ। शर्मिंदा हूँ कि सामने दिख रहे ख़तरे को देखते हुए भी अंजान बनने का गुनाह हम सब साथ मिलकर कर रहे हैं। 

ब्लू व्हेल, मोमोज जैसे ख़तरनाक गेम के चक्रव्यूह से अभी निकले ही नहीं थे कि ऑन लाइन पढ़ाई के साथ ना जाने किस किस वेब जाल में बच्चे फँसते जा रहे हैं। हम बड़े बस शुतुरमुर्ग़ बने बैठे हैं। आते हुए ख़तरे से अनजान। इस ख़तरे कि नाम है अवसाद। इस ख़तरे को शायद- शायद थोड़ा कम किया जा सकता है , थोड़ा ज़्यादा ख़्याल रखकर।

* बच्चे को ऑनलाइन क्लास में अकेले ना छोड़े। हमने तो दो साल के टोडलर के हाथों में भी मोबाइल पकड़ा दिए हैं, यह बहुत गंभीर है। यदि जॉब करते हैं तब भी वापस आने ओर बच्चे के साथ प्यार से बैठे। पूछे-जाने- समझे कि उसने क्या पढ़ा-समझा। जासूसी करना अलग बात है , निगाह रखना अलग बात। अपने बच्चे को अपनी निगाहों से दूर ना करें। 

* दिन में दो घंटे सिर्फ़ अपने बच्चे के साथ बिताएँ। उसे यह समझाए नहीं महसूस कराएँ कि वास्तविक दुनिया वर्चुअल स्पेस से कहीं ज़्यादा सुंदर है। 

* बोर्ड गेम्स पर पड़ी धूल झाड़ने का वक़्त आ गया है । बाहर नहीं जा सकते को घर का उजियारा-हवादार कोना खोजिए अपने बच्चों के साथ पंगत जमाइए।

* 10 साल से छोटे बच्चे को बेड टाइम स्टोरी सुनाना ना भूलें। गुड नाइट किस - गले लगना, चोचला नहीं बच्चे को यह विश्वास दिलानाहै कि आप घोर अंधेरे में भी उसके साथ हैं।अवसाद अकसर रात में हावी होता है । इसलिए अच्छी कहानियाँ बच्चों को विश्वास दिलाती हैं कि अंधेरे से घबराते नहीं हैं। 

* कितनी भी छोटी जगह में रहें एक पौधा लगा सकते हैं। अपने बच्चे के साथ मिलकर उसे लगाएँ, बच्चे को उसका ध्यान रखना सिखाएँ। साथ दें। विश्वास कीजिए एक नन्हा सा पौधा अवसाद भगाने में बड़ी-बड़ी थेरेपी को मात दे सकता है। 

* सबसे बड़ी बात बच्चों के साथ आप ख़ुद मोबाइल में ना खोए रहें। बच्चा दस साल से बड़ा है तो उसके साथ बैठकर सारे ऑनलाइन फ़्रोड डिस्कस करना ना भूलें। ये हमारे बच्चे हैं, इनके गहरे अवसाद के लिए हम सब दोषी हैं। एक समाज के रूप में यह हमारी असफलता है । बच्चे सबके साँझा होते हैं। इन्हें अवसाद में घिरने से बचाना हम सब का सामूहिक दायित्व है ।

* बाक़ी बच्चों से हुई ग़लतियों के बारे में उन्हें समझाए , माफ़ कर दें। असल ग़लती बच्चों की नहीं हम बड़ों की है। इस कोरोना काल में हमने उनकी ज़िंदगी सहज बनाने के लिए कुछ खास ना किया । 

( बाक़ी एक माँ के रूप में रोज़ अपनी ग़लतियों से सबक़ ले रही हूँ। ग़लत यह मासूम नहीं हम बड़े हैं।)
#श्रुति_अग्रवाल


Thanks for visiting our website!

Post a Comment

0 Comments