गौरैया.... जब हम छोटे थे तब यह हमारे परिवार का ही एक हिस्सा हुआ करती थी। हमारे कमरे के बाहर पड़ी कड़ियों में गौरैया अपना घोंसला बनाकर अंडे दिया करती थी। कभी-कभी घोसले से अंडा नीचे गिर कर फूट जाया करता था और उसमें से नवजात शिशु निकलता था जो कि सांस ले रहा होता था। हम बच्चे लग जाते थे उसकी देखभाल में यह सोचकर कि इसको हम ही पालकर बड़ा कर देंगे। कभी उस को पानी पिलाते कभी उसे खाना खिलाने की कोशिश करते। मम्मी डांटती थी कि इसको हाथ मत लगाओ वरना चिड़िया इसे वापस नहीं ले कर जाएगी। अक्सर चिड़िया बच्चे को वापस घोसले में ले जाती थी। कभी-कभी कोई बच्चा मर भी जाया करता था। फिर हम उसे अपने घर के सामने धर्मशाला में ले जाकर गड्ढा खोदकर दबा दिया करते थे और उसके ऊपर कोई निशानी बना देते थे जिससे कि आकर दोबारा उसको देख सकें।
सुबह उठते ही चिड़िया चिड़ा के लिए आंगन में रोटी के टुकड़े तोड़ तोड़ कर डालना, फिर बैठकर उनको खाते हुए देखना। गिनती करना कि आज कितनी चिड़िया आई हमारे आंगन में। जिस चिड़िया की चोंच के आसपास पीली धारी होती थी उसको देखते ही चिल्लाते.... देखो, चिड़िया का बच्चा... यह बड़ा हो रहा है.... बड़ा आनंद आता था चिड़िया को अपने आंगन में चहचहाते हुए देखकर, खाना खाते देखकर।
लेकिन आज यह प्यारी सी चिड़िया पूरी तरह से गायब हो गई है। ना हमारे अंगना में आती, ना दाना चुगती, ना चहचहाती, ना हमारे घरों में घोंसला बनाती, ना अंडे देती। हमने अपने घरों को इतना आधुनिक बना लिया है कि गौरैया के लिए उसमें रहने की जगह ही नहीं बची। समाप्त होती जा रही है गौरैया इस धरती से।
आइए, इस गौरैया को बचाएं, अपने घरों में गौरैया के रहने के लिए भी एक जगह बनाएं गत्ते से या पेटी से। जहां गोरैया खुद को सुरक्षित महसूस करके अपना घोंसला बना सके अपने अंडे दे सके और अपने परिवार को सुरक्षित रख सके। यदि ऐसा हो गया तो निश्चित रूप से फिर से हमारे आंगन में ये चिड़िया चिड़ा आकर बैठा करेंगे, रोज सुबह अपनी मधुर आवाज से हमें जगाया करेंगे और हमसे खाना मांगा करेंगे।
आपका अपना
जगवीर चौधरी।
धन्यवाद।
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