बेसिक का अध्यापक लगातार निराशा से गुजर रहा। कोई अधिकारी कोई मंत्री कुछ सुन ही नहीं रहा। न कोई प्रमोशन की बात करता है, न कोई तबादले की। जुलाई लग गयी और जनवरी के डीए का पता नहीं फिर भी अध्यापक लगातार काम में लगा है। डीबीटी पूरा कर रहा, निपुण भारत में लगा है, स्कूल रेडिनेस में संलग्न है। हम से सिर्फ काम की उम्मीद की जा रही, हमारे कायाकल्प, हमारे निपुणता, हमारे रेडिनेस पर कोई बात ही नहीं कर रहा। मंत्री जी तो इतने वीर निकले कि कह दिए 'टीचर शिक्षक अनुपात बेहतर है, ज़्यादा है' जबकि कई विद्यालय आज भी एकल हैं, इसका मैं स्वयं उदाहरण हूँ।
क्या खुन्नस है हमसे?, क्यों खुन्नस है? सभी विभागों के तबादले नियत समय पर हो जाते हैं, हमारी बारी आती है तो विभागों के अधिकारियों की नानी.....? क्या हम घर नहीं जाना चाहते? हम भी बीबी-बच्चों के साथ वक्त बिताना चाहते हैं, हाँ हम विदेश घूमने नहीं जा सकते, ऊपरी कमाई थोड़ी होती है हमारी!
कैशलेस चिकित्सा से जुड़ने की उम्मीद अब टूट रही। क्या कभी कोई सरकार, अधिकारी या मंत्री हमें ऐसा मिलेगा जो हमारे वेतन पर फब्तियां न कसके हमारे कामों की सराहना करे, हमारे भी बेहतरी के विषय में सोचे, हमारे यात्रा भत्ता के लिए सरकारों से सिफारिश करे? घर में मजदूर लगते हैं तो उनको भी उनके अनुसार सुविधाएं देनी पड़ती है, हम तो सरकार के आदमी हैं, हमसे इतनी बैरता क्यों?
सालों से चली आ रही आवास भत्ता में कोई तब्दीली ही नहीं हुई। 1340 रुपये में कौन देगा किराए पर एक रूम? हम पिछड़े जनपद में रहते हैं यहां का मिनिमम किराया 3500 रुपये है अब सोचिए अच्छे शहरों का क्या हाल होता होगा?
अरे! हम शिक्षक हैं यार। बेहद संवेदनशील कार्य से जुड़े हैं। जो भी आता है हमें हकालने को उतावला रहता है, किसी को कोई फिक्र ही नहीं कि हमें भी कुछ सुविधाओं की ज़रूरत हो सकती है लेकिन कोई नहीं है हमारा मसीहा है। सरकारें अब शिक्षा पर कम दिखावे पर ज़्यादा खर्च कर रहीं।
गूगल अपने कर्मचारियों को छूट और बेहतर से बेहतर सुविधा देने में कभी गुरेज नहीं करता। तभी गूगल का आउटपुट बेस्ट रहता। हमें छूट न दीजिए तो कमसे कम थोड़ी बहुत सुविधाओं पर ही विचार कर लीजिए फिर देखिए विद्यालयों का कायापलट। जब आदमी मन से खुश होता है तो वह एक घण्टे के बजाय दो घण्टे काम करता है बिना कोई शिकायत किए...।
साभार 🙏🏻
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