बता दें कि हर जनपद में काफी संख्या में ऐसे विद्यालय हैं। जहां पर शिक्षकों और बच्चों का अनुपात बराबर नहीं है। इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है। अमृत विचार को मिली जानकारी के मुताबिक कई विद्यालयों में बच्चों की संख्या 25 से 30 है और शिक्षकों की संख्या 4 से 5 है। इसके बीच कई विद्यालय ऐसे भी हैं जहां बच्चों की संख्या 200 से 300 है और शिक्षकों की संख्या एक या दो है। स्थिति को देखते हुए विभाग का प्रयास है कि इस अनुपात में सुधार किया जाए। बता दें कि 30 बच्चों पर एक शिक्षक का होना अनिवार्य है।
डेढ़ दशक से नहीं हुआ समायोजन
करीब डेढ़ दशक से समायोजन न होने के कारण विद्यालयों में शिक्षकों का अनुपात काफी खराब हो चुका है। गैर जनपद स्थानांतरण और सेवानिवृत्त होने से कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या कम हो गई, लेकिन छात्र संख्या पहले जैसे होने से पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है।
ऊंची पहुंच वाले शिक्षकों के आगे विभाग भी लचर
ऊंची पहुंच वाले शिक्षकों के आगे विभाग भी लचर साबित हो रहा है। उनके लिए विद्यालय का मानक भी ठेंगे पर रहता है। हालात ये है कि इन शिक्षकों को रोड किनारे वाले विद्यालयों में तैनाती चाहिए भले ही वहा बच्चे कम हो। हैरानी की बात ये है कि विभाग में शिक्षकों की कमी होने के बाद भी इन्हें प्रतिनियुक्ति पर भी भेज दिया जाता है।
बेसिक शिक्षा विभाग के अनुदानित स्कूलों में भी लापरवाही
अमृत विचार को मिली जानकारी के मुताबिक अनुदानित स्कूलों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। वर्तमान स्थिति में जांच हुई तो सारी पोल खुल जायेगी। हालात ये है कि 15 से 20 बच्चों को पढ़ाने के लिए 4-4 शिक्षक हैं तो किसी में 30 से 32 छात्रों के लिए 6 शिक्षक हैं। इन स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों, लिपिक और बाबूओं के वेतन भुगतान के नाम पर हर महीने लाखों रुपये सरकारी धन से खर्च किए जा रहे हैं। जिन पर विभाग को ध्यान देने की जरूरत है।
" विद्यालयों में शिक्षकों और बच्चों के अनुपात को सुधारने की तैयारी चल रही है। जिससे शिक्षकों की संख्या पर्याप्त हो और पढाई गुणवत्तापूर्ण हो सके। इस संबंध में जल्द ही प्रक्रिया को पूरा किया जायेगा"
सुरेन्द्र कुमार तिवारी, सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद
0 Comments